Saturday, September 9, 2017

एक अनोखा मन्दिर जहां दान देना निषेद्ध है ....

प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर, देहरादून, उत्तराखंड 

10 June 2014

आज, हृषिकेश में हमारा चौथा दिन था और कल के तय कार्यक्रम के अनुसार आज हमें मसूरी घूमने जाना था। कल यानि 09 जून का पूरा दिन गंगा माँ के गोद में राफ्टिंग करते कैसे बीत गया, ये  पता ही नहीं चला। रात में, रामझूला के पास 'चोटीवाला' में खाना खाते समय ही यह निर्णय बच्चों के तरफ से निश्चित हो गया कि कल मसूरी घूमने जायेंगे। खाना ख़त्म करने के बाद वहीं; ऑटोरिक्सा पड़ाव के पास स्थित  प्रीपेड टैक्सी स्टैंड के कार्यालय गया और मसूरी जाने के लिए एक चारपहिया वाहन के बारे में पता किया और 10 जून के लिए आना-जाना तय किया। सुबह छह बजे आश्रम से निकलने का वक्त मुकर्रर हुआ। हमसब रात भर मसूरी के हसीं वादियों के हसीन  सपनों  में खोये रहें।  

 वर्तमान में लौटते हैं, यानि, 10 की अहले सुबह सब के सब 4 बजे ही उठ गए। रात की कालिमा अपना अस्तित्व खोते हुए प्रभात की अरुणिमा का स्वागत करने को तैयार थी। सुबह की खामोशियों में भी आश्रम के पीछे से गुजरती माँ गंगा की कलकल धाराओं की आवाज़ हमें स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। उन ठंडी जल धाराओं से छू कर आती पवन के झोंके एकबारगी तन और मन दोनों को झंकृत कर रही थी। मंदिरों से आती घंटियों की आवाजें पुरे वातावरण को धार्मिक बना रहीं थी।  छत  से  सुबह का नज़ारा बहुत ही मनभावन और मोहक था। नित्य -क्रिया से निबट कर 5  बजे तक हमसब  तैयार हो गए थे।   आशु, तो सब से ज्यादा उत्साहित था।

हम जिस आश्रम में रुके थे वो "शीशम झाड़ी"  मुनि की रेती, में था, वहां से रामझूला  की दुरी ज्यादा  नहीं थी, जहाँ से हमने  गाड़ी मंगवाई थी। पर, गाड़ी आने की तयशुदा जगह "चंद्रेश्वर होटल , शीशमझाड़ी" थी, इसलिए हम वहीँ इंतज़ार करने लगे। चाय-नाश्ते के लिए रास्ते के किसी ढाबे या होटल पर रुकना था इसलिए कोई  हड़बड़ी भी नहीं थी।  साढे पाँच बजे श्री अजय भट्ट, जिनकी गाड़ी से हमें जाना था , ने फोन किया कि  'मैं आ रहा हूँ, आप लोग तैयार रहिए'; मैंने कहा - हम तैयार हैं, आप आ जाओ। लगभग पंद्रह मिनट के बाद एक सफ़ेद Indigo CS UK07TC 2550 हमारे सामने आ खड़ी हुईं।


प्रारंभिक परिचय के बाद अजय भट्ट ने गाड़ी में लगे माता की मूर्ति को प्रणाम किया और हम आगे के सफर के लिए चल पड़े। सुबह-सुबह जल्द ही हमारी गाड़ी लोकल रास्तों से निकल कर राष्ट्रीय राजमार्ग 7 पर आ गई। अजय भाई, जो जल्द ही हम सब से घुलमिल गए थे, उन्होंने बतलाया कि लगभग 80 किलोमीटर का सफर है जिसमे लगभग 3 घंटे का वक्त लगेगा, अगर रास्ते में जाम न मिले तो। रास्ता शहर से बाहर निकल रहा था  





सुबह की खुमारी रास्ते पर भी दिख रही थी।  छोटी चाय की दुकानों के अलावे सभी दुकानें अभी बंद थी। लोगबाग अपने  रात्रि आवरण में ही चाय की दुकानों पे व्यस्त दिख रहे थे, एक व्यक्ति  अखबार हाथ में लिए एक तरफ से पढ़ रहा था उसी वक्त दूसरा  व्यक्ति  उसी अख़बार  को  अपनी ओर से पढ़ रहा था। सुधा दूध की बूथ पर जहाँ लोग, सुबह दूध लेने के लिए आये थे वो भी चाय दुकान की शोभा बढा थे।  यूँ कहिये की पूरा माहौल ही बेहद सामान्य और शांतिपूर्ण था, सड़क पे गाड़ियाँ भी एक्का दुक्का हीं आ जा रही थी। 

अब  हम  देहरादून के जौलीग्रांट हवाई अड्डा के पास से गुजर रहे थे। रास्ते में हमें डोईवाला, लच्छीवाला , मियांवाला, डालनवाला मिले । भाई, ये स्थानीय जगहों नाम  के हैं जहाॅं से गुजरते हुए राजपुर मार्ग पर आ गये। मौसम एकदम साफ़ और सुहाना था जैसे इस सफर के लिए ही बना हो। मसूरी डाइवर्सन से बायें रास्ता मसूरी मार्ग  कहलाता है, जो मलसी डियर पार्क होते हुए  मसूरी जाती है , और सीधे, राजपुर मार्ग जो आगे मलसी रिजर्व्ड फारेस्ट से होकर गुजरता है, और आगे फिर से मसूरी मार्ग में मिलता है । 


अभी तक हमलोग 400 मीटर से चल कर 1000 मीटर की ऊंचाई पर पहुँच गए थे जिसका असर मौसम साफ बता रहा था, ठण्ड लगने लगी थी। बच्चे मौसम के इस बदलाव का बड़ा मज़ा ले रहे थे , पर पहाड़ो के गोल गोल घुमावदार रास्तों ने उन्हें थोड़ा परेशां भी किया।  आशु , मेरा बेटा ,  उल्टी करने लगा उसे देख कर मेरी छोटी बेटी ने भी वही कार्यक्रम शुरू कर दिया। जल्द ही गाड़ी को बार बार सड़क के किनारे रोकने की नौबत आने लगी। दोनों ने तो जैसे जुगलबंदी ही शुरू कर दी। हमने सोचा की अरे ये क्या हो गया , दोनोँ की तबियत एक साथ कैसे ख़राब हो गई। तभी अजय भाई ने मेडिकल किट से उल्टी बंद होने की दवा दोनों को दी , और हमें सांत्वना देते हुए बताया की ये लक्षण high altitude के कारण है जो अपने आप थोड़ी देर में ठीक हो जाएगी। फिर उन्होंने बच्चों को थोड़ा सोने को कहा। उनके इस तरह के संवेदनशील व्यवहार को देख मैं और मेरी पत्नी काफी प्रभावित हुए।  फिर  हम सब नजारों का आनंद लेने लगे , जो थोड़ी देर के लिए बच्चों की चिंता के कारण नज़रों से ओझल हो रहे थे। थोड़ी देर में अजय भाई ने गाड़ी को मुख्य मार्ग पर एक तरफ ये कहते हुए साइड करके रोक दिया की ये एक अनोखा शिव मंदिर है जाइये दर्शन कर लीजिये। इस तरह हमें  प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन करने का सौभाग्य मिला।  एक  निजी प्रबंधन द्वारा भव्य मन्दिर बनवाया गया था जिसका सञ्चालन भी उसी  निजी प्रबंधन द्वारा किया जा रहा था ये  बात हमें ,अन्दर घुसने से पहले ही वहां लगे बोर्ड से पता चला।  एक बोर्ड  और लगा दिखा कि ‘पैसे चढाना सख्त मना है’। यही वाक्य पढकर मन ही मन  में मन्दिर-प्रबंधन का समर्पण भाव  प्रसंशनीय लगा ।



आश्रम की छत से माँ गंगा के दर्शन 

आश्रम के पीछे कलकल करती माँ गंगा तथा सामने रामझूला का दृश्य 
सामने का मनोहारी दृश्य 
  
हमारा वाहन 
पूरे मन्दिर की दीवारों पर बस एक ही बात लिखी है कि भगवान हम सबको पैसे देते हैं, उन्हें पैसे चढाकर उनकी मर्यादा कम ना करें। एकदम  सही सन्देश है।  प्राइवेट मन्दिर होने का एकमात्र अर्थ यही भी लगा कि इस मन्दिर का कोई ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व नहीं है। अक्सर  मंदिरों में, मंदिर प्रबंधन की ओर  से मंदिर के सौन्दर्यीकरण एवं विकास तथा रख-रखाव हेतु  दान पात्र रखा होता है, या दान की रसीद काटी जाती है। यहाँ पर आने वाले भक्त अपनी स्वेच्छा से दान या चढ़ावा चढ़ाते हैं , पर यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर दान देने की सख्त मनाही है। यहां लिखी हुई  जानकारी के मुताबिक यह मंदिर एक निजी प्रोपर्टी है जिसका  निर्माण योगीराज मूलचंद खत्री, शिवरत्न केंद्र, हरिद्वार  के द्वारा कराया गया है।  

मंदिर में भगवान शिव के अलावा कई देवी देवताओं की मूर्तियां भी हैं। इन्हे फूलों से सजाया गया है। हमने महादेव का दर्शन किया और वही पास में बैठे पुजारी जी से प्रसाद ली, उस दिन खिचडी और सेब का प्रसाद दिया जा रहा था, चाय भी मिल रही थी। विशेष प्रकार से खिचडी बनी थी। मुझे तो खिचडी बेहद पसंद है। और खिचडी के गुण और स्वाद को सभी जानते हैं। मंदिर में काफी साफ़ सफाई थी, कहीं भी कोई गन्दगी नहीं, धुआं नहीं। मन्दिर के कार्य-सेवक लगातार भक्तों पर नजर रखते हैं ताकि फैलाये अगर कोई गंदगी या खिचडी को नीचे गिराता हुआ खा रहा होता हो तो, वे उसे तुरन्त टोक देते थे कि बाकी प्रसाद बाद में खाइयेगा, पहले कृपया इसे उठाओ। मन्दिर में कुछ राशि-रत्नों, मालाएं तथा धार्मिक वस्तुएं बेचने की दुकानें भी हैं। यहां से उनकी बिक्री होती है। संभवतः उनकी बिक्री से होने वाली आय मंदिर को जाता होगा। मंदिर के बगल में एक कैंटीन भी है, जहां खाने पीने की चीजें खरीदी जाती है। संक्षेप में , "प्रकाशेश्वर महादेव का मंदिर देहरादून में मसूरी रोड पर मलसी रिजर्वड फाॅरेस्ट से आगे, कुथाल गेट के पास स्थित है। यह देहरादून से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर का निर्माण 1990-91 के दौरान कराया गया। मंदिर के पास से देहरादून की घाटी का सुंदर नजारा दिखाई देता है। मंदिर मुख्य सड़क पर ही स्थित है। पार्किंग के लिए सीमित जगह उपलब्ध है। पर मसूरी जाने वाले ज्यादातर लोग यहां रुकते हैं।" खैर , हमने महादेव तथा अन्य देव-विग्रहों के दर्शन किये और परिवार तथा दोस्तों के लिए आशिर्वाद और बेहतर स्वास्थ्य की कामना करते हुए वापस गाड़ी बैठ गये। 

अब हम सब आगे मसूरी की तरफ बढ़ते जा रहें थे। 


प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर 

अनुरोध या आदेश 


मंदिर में लगा हुआ सुचना पट्ट 

6 comments:

  1. अरे वाह खिचड़ी बहुत अच्छा , ऊंचाई पर जाने से उलटी की समस्या आम बात है, पर इसका असर सफर के शुरुआत में ही रहता है फिर ठीक हो जाता है, वैसे बहुत अच्छा लिखा है आपने

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  2. एक कोशिश की है हौसला बढाने के लिये आभार भाई

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  3. Replies
    1. aapko achha laga,mujhe achcha laga, aabhar bhai, any criticisms or suggestions will make me perfect

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  4. आप मेरे ब्लॉग पर आये, पढ़ा और लिखने को प्रेरित किया । हितेश भाई, मै तहे दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ । सुझाव, मेरे लिये अनमोल रत्नों की तरह है ।

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