प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर, देहरादून, उत्तराखंड
10 June 2014
आज, हृषिकेश में हमारा चौथा दिन था और कल के तय कार्यक्रम के अनुसार आज हमें मसूरी घूमने जाना था। कल यानि 09 जून का पूरा दिन गंगा माँ के गोद में राफ्टिंग करते कैसे बीत गया, ये पता ही नहीं चला। रात में, रामझूला के पास 'चोटीवाला' में खाना खाते समय ही यह निर्णय बच्चों के तरफ से निश्चित हो गया कि कल मसूरी घूमने जायेंगे। खाना ख़त्म करने के बाद वहीं; ऑटोरिक्सा पड़ाव के पास स्थित प्रीपेड टैक्सी स्टैंड के कार्यालय गया और मसूरी जाने के लिए एक चारपहिया वाहन के बारे में पता किया और 10 जून के लिए आना-जाना तय किया। सुबह छह बजे आश्रम से निकलने का वक्त मुकर्रर हुआ। हमसब रात भर मसूरी के हसीं वादियों के हसीन सपनों में खोये रहें।
वर्तमान में लौटते हैं, यानि, 10 की अहले सुबह सब के सब 4 बजे ही उठ गए। रात की कालिमा अपना अस्तित्व खोते हुए प्रभात की अरुणिमा का स्वागत करने को तैयार थी। सुबह की खामोशियों में भी आश्रम के पीछे से गुजरती माँ गंगा की कलकल धाराओं की आवाज़ हमें स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। उन ठंडी जल धाराओं से छू कर आती पवन के झोंके एकबारगी तन और मन दोनों को झंकृत कर रही थी। मंदिरों से आती घंटियों की आवाजें पुरे वातावरण को धार्मिक बना रहीं थी। छत से सुबह का नज़ारा बहुत ही मनभावन और मोहक था। नित्य -क्रिया से निबट कर 5 बजे तक हमसब तैयार हो गए थे। आशु, तो सब से ज्यादा उत्साहित था।
हम जिस आश्रम में रुके थे वो "शीशम झाड़ी" मुनि की रेती, में था, वहां से रामझूला की दुरी ज्यादा नहीं थी, जहाँ से हमने गाड़ी मंगवाई थी। पर, गाड़ी आने की तयशुदा जगह "चंद्रेश्वर होटल , शीशमझाड़ी" थी, इसलिए हम वहीँ इंतज़ार करने लगे। चाय-नाश्ते के लिए रास्ते के किसी ढाबे या होटल पर रुकना था इसलिए कोई हड़बड़ी भी नहीं थी। साढे पाँच बजे श्री अजय भट्ट, जिनकी गाड़ी से हमें जाना था , ने फोन किया कि 'मैं आ रहा हूँ, आप लोग तैयार रहिए'; मैंने कहा - हम तैयार हैं, आप आ जाओ। लगभग पंद्रह मिनट के बाद एक सफ़ेद Indigo CS UK07TC 2550 हमारे सामने आ खड़ी हुईं।
प्रारंभिक परिचय के बाद अजय भट्ट ने गाड़ी में लगे माता की मूर्ति को प्रणाम किया और हम आगे के सफर के लिए चल पड़े। सुबह-सुबह जल्द ही हमारी गाड़ी लोकल रास्तों से निकल कर राष्ट्रीय राजमार्ग 7 पर आ गई। अजय भाई, जो जल्द ही हम सब से घुलमिल गए थे, उन्होंने बतलाया कि लगभग 80 किलोमीटर का सफर है जिसमे लगभग 3 घंटे का वक्त लगेगा, अगर रास्ते में जाम न मिले तो। रास्ता शहर से बाहर निकल रहा था
हम जिस आश्रम में रुके थे वो "शीशम झाड़ी" मुनि की रेती, में था, वहां से रामझूला की दुरी ज्यादा नहीं थी, जहाँ से हमने गाड़ी मंगवाई थी। पर, गाड़ी आने की तयशुदा जगह "चंद्रेश्वर होटल , शीशमझाड़ी" थी, इसलिए हम वहीँ इंतज़ार करने लगे। चाय-नाश्ते के लिए रास्ते के किसी ढाबे या होटल पर रुकना था इसलिए कोई हड़बड़ी भी नहीं थी। साढे पाँच बजे श्री अजय भट्ट, जिनकी गाड़ी से हमें जाना था , ने फोन किया कि 'मैं आ रहा हूँ, आप लोग तैयार रहिए'; मैंने कहा - हम तैयार हैं, आप आ जाओ। लगभग पंद्रह मिनट के बाद एक सफ़ेद Indigo CS UK07TC 2550 हमारे सामने आ खड़ी हुईं।
प्रारंभिक परिचय के बाद अजय भट्ट ने गाड़ी में लगे माता की मूर्ति को प्रणाम किया और हम आगे के सफर के लिए चल पड़े। सुबह-सुबह जल्द ही हमारी गाड़ी लोकल रास्तों से निकल कर राष्ट्रीय राजमार्ग 7 पर आ गई। अजय भाई, जो जल्द ही हम सब से घुलमिल गए थे, उन्होंने बतलाया कि लगभग 80 किलोमीटर का सफर है जिसमे लगभग 3 घंटे का वक्त लगेगा, अगर रास्ते में जाम न मिले तो। रास्ता शहर से बाहर निकल रहा था